समाचार प्रकाशन के बाद कोरिया वनमंडल अपने भ्रष्ट कार्यों की लीपा पोती में लगा
घटिया सड़क के गढ्ढों में पाटी जा रही मिट्टी
जिन दो मजदूरों का हमने नाम लिया उन्हे घर जाकर आनन फानन में दी गई मजदूरी
घबराए साहब ने एक परिवार को कार्यालय बुलाकर लिखवाया
अभी भी कई मजदूरी से वंचित
केवल खाता की जानकारी लेने से क्या होगा साहब, मजदूरों को उनके हक की मजदूरी चाहिए
चाटुकार लगे अंगदीय पैर जमाने वाले साहब के बचाव में जो कहते है वनमंडल के प्रमुख यही है वर्षों से सभी कार्य यही देखते है जो बता रहा है के डीएफओ व अन्य केवल मूकदर्शक ही है
मामा – भांजे का खेल और पुलिया निर्माण कार्य फेल बड़ी बड़ी दरारें अब कैसे करेंगे थूक पालिश?
आगे कई भ्रष्ट कार्यों को करेंगे उजागर साथ ही देना होगा संबंधितों को जवाब वरना होगा जन्नांदोलन। जनता के हक के लिए लड़ते रहेंगे
एस. के.”रूप”
बैकुंठपुर/ कोरिया वन मंडल के द्वारा भ्रष्ट कार्यों को कराने में एक प्रसिद्ध अंगदिय अधिकारी का बड़ा अहम किरदार है सुना है इनके राज्य में केवल इनकी ही चलती है इनके तुगलकी फरमान के आगे कोई नही टिकता जिसे इनके ही लोगो ने इनकी बड़ाई वृतांत में सिद्ध कर दिया है लेकिन वास्तविकता इससे परे ही है।कई कई भ्रष्ट और घटिया निर्माण के साथ अनियमितता हुई है। जिसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दायित्व समझ कर एक एक करके जनता के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। कई गुप्त सूचनाएं यहां तक मिली है के पदोन्नति, स्थानांतरण, पदों पर नियुक्ति, आदि विभागीय और मुख्यालय तक के कार्यों में इन साहब को महारथ हासिल है। स्टापडेम एक दिखाने के लिए, बाकी सारे घटिया, नर्सरी केवल एक जिसका गुणगान हो बाकी पौधों का संवर्धन संरक्षण और गुणों पर चर्चा क्यों नही ? सोनहत क्षेत्र में हुए अंधाधुंध कटाई को मौन होकर देखना? जनकपुर में घटिया निर्माण से लेकर वन का काटा जाना और वन अधिकार के लिए भटकते आदिवासी? मजदूरों को भुगतान नहीं उसे क्यों नही दिखाते? वन अधिकार पत्रक के लिए लोग कई कई वर्षों से तड़प रहे है चक्कर काट रहे है आदिवासी मर रहे है इस पर क्यों लिखा नही जाता? वन अधिकार के एवज में पैसा ऐंठ लिया जाता है इस पर क्यों मौन है? पटेल सरीखे डीएफओ और पटेल सरीखे रेंजर आदिवासियों राष्ट्रपति के दत्तकों पण्डो जन जाति पर अत्याचार करते है जिस मामले में शिकायत होती है एक का स्थानातरण होता है। और एक आदिवासियों के पैर में गिरकर क्षमायाचना करके समझौता का गुहार लगाता है जबकि उस प्रकरण की जांच चल ही रही है। इस पर क्यों नही लिखा जाता? गेबियन,पुल,सड़क,पौध संवर्धन,रोपण,वृक्षों की अंधाधुंध कटाई,घासीदास उद्यान, कैम्पा आदि के कार्य, वन्य जीव पर मौन?
और एक दो स्थान में जाकर अपने ही आदमी और उसी विभाग के लोगो से गुणगान कराना क्या यही पत्रकारिता है? नही यह चाटुकारिता अवश्य है। कुछ लोगो के बीच यह चर्चा का विषय है कि या तो साहब इतने घबरा गए है के अपने अथाह संपत्ति सागर से बूंद बूंद पिलाकर इनसे अपनी बड़ाई करवा रहे है या तो ये बचना चाहते है अपने ही द्वारा कराए गए भ्रष्ट कार्यों के जवाब देने से। क्योंकि इन्ही चाटुकार लोगो ने ही अपने ऑनलाइन चैनल में दिखाया और बताया के साहब के पास धन संपत्ति की कोई कमी नही है इनके पास इनके पूर्वजों ने धन संपत्ति खजानों का भंडार छोड़ रखा है। जो अतिश्योक्ति से कम नही लग रही।
विभाग द्वारा भ्रष्ट कार्यों की लीपापोती:
वन विभाग बैकुंठपुर के द्वारा जंगल के बोल्डर के ऊपर मिट्टी पाट दी गई थी जिस पर रोड रोलर का भी प्रयोग नही हुआ इस खबर को हमने प्रकाशित किया और वन अमला इसी सड़क में लीपा पोती में लग गया। और इसमें बने बड़े बड़े गढ्ढे पाटे जा रहे है।
दो को मजदूरी और बाकी को क्या?
जानकारी के अनुसार जिन दो मजदूरों को प्रमुखता से सम्यक क्रांति ने दिखाया और अन्य के लिए आवाज उठाई उन दोनो परिवार को उनके घर जाकर आनन फानन में वन विभाग के प्रमुख अधिकारी ने मजदूरी दी लेकिन अभी तक कई कई को मजदूरी नहीं मिली है।
घबराए साहब ने एक परिवार को कार्यालय में बुला लिखवाया:
वन विभाग ने मानक स्तर पर कार्य तो किया नही अमानकों में भी मानक मजदूरी तक नही दी और जो दिया वह सम्यक क्रांति में प्रकाशन और जनहित संघ के संज्ञान में आने के बाद दिया जानकारी मिली है कि वन विभाग द्वारा एक आदिवासी परिवार को विभाग में बुलाकर रिसीविंग लिया गया है बकायदा लिखवाकर के उन्हे मजदूरी मिल गई है। जो दर्शा रहा है के साहब अपने बचाव का मार्ग बनाने के लिए कुछ भी कर सकते है।
कई के खाते की जानकारी ले रहे पर जानकारी से क्या होगा?
जानकारी यह भी मिली है के पीपरढाब कई मजदूरों से उनके खाते की जानकारी ली गई है। मनसुख सलका एवम आस पास के कई ग्रामीणों से तो यह जानकारी भी नही ली गई है। लेकिन जानकारी बस लेकर क्या होगा ग्रामीणों को अपनी मजदूरी चाहिए।
कुछ साहब के खरीदे हुए चाटुकार जो उनके आस पास जमावड़ा लगाए रहते है जिनके घर का खर्च ऐसे भ्रष्ट तंत्र के प्रमुख उठा रहे है वे कैसे उनके भ्रष्टाचार को उजागर करेंगे वो तो उनकी हुजूरी ही करेंगे और यही करते करते साहब के अंगदीय पैर और उनकी पकड़ और उनके संपत्ति का विवरण वो खुद ही दे रहे है के कैसे साहब की ऊंची पकड़ है और वह एक ही स्थान पर कई दशकों से डटकर भ्रष्ट कार्य को सरलता से अंजाम दे रहे है। डीएफओ और अन्य मूकदर्शक की तरह है यह सिद्ध भी हो चुका है जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है के उक्त साहब इस स्थिति तक आने के लिए कितना जी तोड़ महनत किए है इन्ही के प्रसंशकों के अनुआर जिनके पूर्वजों के पास खजाना का भंडार है विडंबना है के वह वनपाल से वन प्रमुख तक का सफर काट रहा है और खुद की संपत्तियों में बढ़ोत्तरी के साथ विभागीय सांठ गांठ करके भ्रष्ट कार्यों को बेधड़क अंजाम दे रहा है।
मामा – भांजे का खेल: पुलिया निर्माण कार्य फेल अन्य कई कार्य घटिया,घपलाअनियमितता। संरक्षण जब मामा का हो तो भांजा द्वारा अवैध अमानक कार्यों को बेधड़क किया गया। इन सभी बिंदुओं पर जनांदोलन की भी तैयारी है।कैसे होगी फटी बड़ी बड़ी दरारों को लीपा पोती
अभी यही तक।आगे जारी रहेगा।