छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में है दूसरा राष्ट्रपति भवन,स्वतंत्रता आंदोलन के समय यही के जंगलों में छुपे थे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, शिक्षक के रूप में रहे थे कई दिन
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एस. के.”रूप”
सूरजपुर/ देश की राजधानी दिल्ली स्थित अंग्रेजकाल का वायसराय हाउस आजादी के बाद से वर्तमान राष्ट्रपति भवन से सभी लोग परिचित हैं लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि दूसरा राष्ट्रपति भवन छत्तीसगढ प्रदेश के सूरजपुर जिले अंतर्गत वनांचल ग्राम पण्डोनगर में है छत्तीसगढ़ वासियों के लिए यह गर्व का विषय है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता आंदोलन में जब क्रांतिकारी थे तब तत्कालीन सरगुजा अंचल के पण्डोनगर में छिपे थे और भेष बदलकर शिक्षक बनकर आदिवासी जनजाति को शिक्षित करने का कार्य कर रहे थे।
भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति एवं भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख क्रांतिकारी नेता रहे डॉ राजेंद्र प्रसाद और इसी समय वे तत्कालीन सरगुजा अंचल के जंगल में छुपे और पंडोनगर में आदिवासी पण्डोजनजाति एवं कोरवा जनजाति को शिक्षित किया।
पुरानी यादों को ताजा करने 1952 में दोबारा आए छत्तीसगढ़–
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के द्वारा सर्वसम्मति से स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद चुने गए और इसी दिन रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा रचित जन गण मन को राष्ट्रगान का दर्जा मिला डॉ राजेंद्र प्रसाद सन 1952 और 1957 में लगातार दो बार राष्ट्रपति चुने गए यह कीर्ति केवल उन्हें ही प्राप्त है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद को जो वेतन मिलता उसका आधा वह राष्ट्रीयकोष में दान कर देते थे स्वाधीनता आंदोलन में भी महात्मा गांधी के कहने पर कूद पड़े इसके पूर्व वे बिहार के शीर्ष वकीलों में से थे राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनका जीवन सादगीपूर्ण रहा वे हमेशा जमीन पर आसन बिछाकर ही भोजन किया करते थे साथ ही राष्ट्रपति भवन में अंग्रेजी तौर तरीकों को उन्होंने सिरे से अस्वीकार कर दिया था इन्हीं दिनों जब देश के प्रथम राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित हो चुके थे तब सरगुजा आंचल में छिपकर रहने वाले बीते दिनों की याद ताजा करने 22 नवंबर सन 1952 को वर्तमान सूरजपुर जिले के कमलपुर के निकट ग्राम पण्डोनगर पहुंचे और इसी दिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने आदिवासी पांडव जनजाति को गोद लेते हुए राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया।
राष्ट्रपति के ठहरने हेतु बनाया गया था खपरैल का कच्चामकान –
पण्डोनगर स्थित ‘राष्ट्रपति भवन’ को उस दौर में देश के प्रथम राष्ट्रपति के ठहरने के लिए कच्चा खपरैल मकान बनाया गया था तब यह भवन भारी आकर्षण का केंद्र रहा क्योंकि देश के राष्ट्रपति इसमें रुके थे और इन वनवासियों से जुड़े हुए थे वो भी एक शिक्षक के रूप में। वर्तमान में उक्त भवन में शीट व टाइल्स का प्रयोग कर नवीन रूप दिया गया है लेकिन भवन पुरानी यादों को संजोए हुए है।
महामहिम ने आंगन में लगाया था खैर का पौधा
इसी दिन देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने खैर का एक पौधा उक्त भवन के आंगन में लगाया जो आज विशाल पेड़ बन चुका है इस वृक्ष के नीचे एक चबूतरा है वहीं एक बोर्ड है जिसमें लिखा है ‘महामहिम डॉ राजेंद्र प्रसाद जी द्वारा 1952 को खेर के पौधे का वृक्षारोपण किया गया!’
राष्ट्रपति भवन ग्राम वासियों के लिए गौरव का विषय–
आदिवासी पण्डो कोरवा जनजाति बाहुल्य इस गांव के निवासी जब इस भवन को देखते हैं खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं ग्रामवासी प्रसन्नता के साथ कहते हैं कि देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद के व्यक्ति हमारे गांव में रहे हैं और हमारे दादा पर दादाओ को शिक्षित भी किया है।
सरगुजा स्टेट क्रांतिकारियों को छिपाने हेतु शरण देता था : टी. एस. सिंहदेव
सरगुजा महाराजा व पूर्व स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव के अनुसार स्वतंत्रता आंदोलन के समय सरगुजा स्टेट क्रांतिकारियों को छिपने के लिए शरण देता था कांग्रेस व सरगुजा स्टेट दोनों के जंग का उद्देश्य एक था देश की आजादी। इसी कारण डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी को सरगुजा में आदिवासियों के बीच शरण दिया गया था सरगुजा स्टेट ने कांग्रेस सम्मेलन के लिए हाथियों पर रसद भेजी थी इसी सम्मेलन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जीते थे राष्ट्रपति बनने के बाद वे पुरानी यादें ताजा करने सरगुजा पैलेस भी आए थे उन्होंने तत्कालीन महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव (टी.एस. के दादाजी) के साथ रहे तब टी. एस. काफी छोटे थे उनका कहना है कि बच्चा होने की वजह से वह यादें मेरे जेहन में धुंधली हैं ।
दरिमा मार्ग पर बनवाया था स्कूल और पण्डोनगर के पास पुल
डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनने के बाद सरगुजा अंचल के जिन-जिन स्थानों से गुजरते लोगों के लिए उत्सव का माहौल बन जाता था उनकी याद में अंबिकापुर के पास दरिमा मार्ग पर एक स्कूल और कुवां भी बनवाया गया था साथ ही पण्डोनगर के समीप एक पुल भी बनाया गया था लेकिन वर्तमान में यह केवल स्मृति में ही शेष है सभी ध्वस्त हो चुके हैं।
3 दिसंबर को गांव के लोग मानते हैं जन्मदिन–
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के ठहरने रूकने एवं आदिवासी पण्डोजनजाति को शिक्षित करने का गौरव प्राप्त ग्रामवासी भी अपने प्रिय नेता महामहिम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी का जन्मदिन प्रतिवर्ष 3 सितंबर को हर्ष उल्लास के साथ मनाया करते हैं।
छत्तीसगढ़ का गौरव ‘राष्ट्रपति भवन’ उपेक्षा का शिकार –
भारत देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने तत्कालित सरगुजा अंचल के वनांचल पण्डोनगर में अपना समय व्यतीत किया वे स्वतंत्रता सेनानी थे और भेष बदलकर शिक्षक के रूप में पण्डो और कोरवा आदि जनजाति को शिक्षित कर रहे थे 24 जनवरी 1950 को भारत देश के महामहिम राष्ट्रपति बनने के बाद वे पुरानी यादें फिर से ताजा करने के लिए पण्डोनगर आए और उन्होंने पण्डोजनजाति को गोद लिया तबसे अधिकृत रूप से उक्त पण्डो राष्ट्रपति के दत्तक कहलाए। यह संपूर्ण छत्तीसगढ़ वासियों के लिए गौरव का विषय है इस भवन की संपूर्ण देखने होनी चाहिए थी यह भवन सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन के लिए विकसित किया जाना चाहिए लेकिन महामहिम राष्ट्रपति की याद में बना स्कूल कुआं पुल आदि ध्वस्त हो गए हैं और यह राष्ट्रपति भवन प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है जिला प्रशासन इस ध्यान नहीं दे रहा है ।ग्राम पंचायत के सरपंच सचिव के भरोसे उक्त धरोहर को छोड़ दिया गया है और इस भवन परिसर के चारों ओर गंदगी व कचरा फैला है, छप्पर में पेड़ों के डगाल टूटकर पड़े हैं तो दीवार पर मनचलों और असामाजिक तत्वों ने प्रेम संदेश लिख दिया है। देश के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद द्वारा लगाए खैर का वृक्ष सहित अन्य वृक्षों की देखभाल नहीं है कहा जाए तो देश का दूसरा राष्ट्रपति भवन भारी उपेक्षित है।इस पत्र के माध्यम से स्थानीय जनता सहित छत्तीसगढ़ की जनता प्रशासन से मांग करती है कि उक्त सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा हेतु तत्परता से कार्य किए जाएं इसके साथ ही पण्डोनगर के पंडोजनजाति व अन्य कोरवा आदिवासी ग्रामीणो ने भी यही मांग शासन और प्रशासन में बैठे जिम्मेदार लोगों से की है।