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कोरोना वायरसके चक्रवात में फंसी करोड़ों भारतियों की जिंदगीयां और कोविड-19 के आक्रमण के साथ संपूर्ण देश मे लॉकडाउन, परिणाम स्वरूप लाखो मजदूरों के “जीविका के साधन मे लॉकडाउन”जिसके कारण मजदूर ,मजबूर होकर एक घरौंदा के टूटने पर दुसरे घरौंदों की तलाश में,, प्रवासी पक्षी की तरह निकल पड़े लंबी यात्रा में, इस उम्मीद के साथ, शायद बारिश से पहले दूसरा घरौंदा बना पाएं। इस संघर्ष सफर में, भीषण गर्मी, खाली पेट, बच्चों का भविष्यकी चिंता और जीविका की तलाश के साथ पुनः जिंदगी की नव लक्ष्य को लेकर संघर्ष यात्रा में निकल पड़े थे। लेकिन सफर में आने वाले कठिनाइयों से उनका मनोबल कमजोर होने लगा और हताशा में कई मजदूरों ने अपनी जान भी गंवा दी थी । पलायन इनके जीवन की मजबूरी बन गई थी, चाहे अपने घर से शहर की ओर हो या पुनः शहर से घर की ओर हो। लॉकडाउन ने ऐसी परिस्थिति निर्मित कर दी थी कि “मजदूर मजबूर, हो गए थे ,मजदूरों ने इस संघर्ष सफर में अपनों को काल के मुंह में जाते देखा था, कहीं बच्चो को मृत मां के साथ चादर उठाकर सोते देखा था । कंही लंबी यात्रा करने वाले मजदूरों को थकावट के कारण रेल की पटरी में ही हमेशा के लिए सोते देखा था । इस संघर्ष सफर में कोविड- 19 को हराने के लिए दौड़ लगाने वाले कितने मजदूरों का जीवन सफर मंजिल तक पहुंचने से पहले ही खत्म हो गया । गर्भ में पल रहा शिशु भी मां की भूख और जीवन के लिए संघर्ष को महसूस कर सहम गया था और इस संघर्ष कोअपना ताकत बनाने के लिए मां के गर्भ से ही अभिमन्यु जैसे मजदूरों की मजबूरी की नई परिभाषा गढ़ने में लगा रहा ताकि दुनिया में आने के बाद अपनी मजबूत इरादों से ऐसे प्रकाश स्तंभ का निर्माण कर सके, जिससे मजदूरों की भावी पीढ़ी प्रकाशित हो सके।
लॉक डाउन में मजदूरों की कथा,. व्यथा और सरकार की व्यवस्था को अभिव्यक्त करने के लिए लेखनी को भी बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। ये लेखन तभी संभव होगा जब हम स्वयं मजदूरों के आंतरिक पीड़ा का दृष्टा और भोक्ता बने.।.
अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हुए मजदूरों का महत्व उनके मेहनत के पसीने से सींचे जाने वाले अमीरों के सूखे खेतों से पूछे? उस संकटकाल में बंद होती फैक्ट्रियों के मशीनों से पूछे?? देश के आर्थिक गतिविधियों के रुके हुए पहियों से पूछे? लॉकडाउन डाउन ने जहां मजदूरों को कंटक पथ पर चलने को मजबूर किया था, वहीं. मजदूरों की महत्ता को
सर्वमान्य भी बना दिया।
मजदूर परिस्थितियों से हार सकते है लेकिन ये भी सत्य है कि मजदूर संघर्षशील योद्धा है, कर्मयोगी, और देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले श्रम वीर हैं। अमीरों के सृजन कर्ता, भारतीय अर्थव्यवस्था के नव निर्माता हैं।
संध्या रामावत
समाजसेविका और साहित्यकार
बैकुठपुर जिला कोरिया छत्तीसगढ़।