कहां दफन हो गया कोरिया वन मंडल के उत्तर तर्रा का सागौन जंगल
अफसर शाही से उपजे निठल्लेपन की मार झेलते कोरिया के जंगल बर्बादी की कगार पर
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एस. के.‘रूप’
कोरिया बैकुंठपुर / जंगल से जल और जमीन ही नहीं बल्कि धरा पर रहने वाले सभी प्राणियों के जीवनधारा का गहरा रिश्ता है और जिसे संरक्षित करने के लिए हर एक तपका प्रयासरत है।परंतु वहीं पर अगर इसकी जिम्मेदारी जिसके हाथों में बतौर बाध्यता सौंपी गई हो और वही जंगलों के प्रति दुश्मन सा कृत्य करे तो फिर ये तो सभी के जीवन से गंदा खेलवाड़ है । जानकारी के अनुसार कोरिया वन मंडल का देवगढ़ वन परिक्षेत्र जहां के तर्रा सर्किल का उत्तर तर्रा बीट जो की सागौन के बड़े वृक्षों के लिए अपनी बड़ी पहचान रखता था परंतु बीते 4,,6 वर्षों में इस सागौन के जंगलों को इस कदर अवैध तरीके से काटा गया की दुर्भाग्यवश वर्तमान में उत्तर तर्रा बीट में एक भी सागौन के वृक्ष नही बचे हैं। जबकि इस पूरे बीट अंतर्गत हजारों सागौन के बड़े वृक्ष थे और यह प्लांटेशन 30 वर्षों से भी अधिक पुराना होने के बाद भी यहां से सागौन की कूप कटाई का भी कोई रिकार्ड नहीं है जिससे यह बात भी साफ हो जाती है की बिना कूप कटाई के सागौन के जंगल कहां दफन हो गए जो आज भी कागजों में सागौन की हरियाली बिखेर रहे हैं।
क्या रसूखदार अफसर और सरकारी तंत्र से सांठगांठ वनों की तबाही का बड़ा कारण?
मिली जानकारी के अनुसार जनाब अफसर की सांठगांठ की जड़ें कोरिया वन मंडल तक ही नहीं बल्कि सरगुजा वनवृत से लेकर अरण्य भवन तक फैली हुई हैं और जिनके हरे हरे नोटों की सदाबहार बारिश से तर बतर यहां के साहब बाबू इनकी जी हुजूरी के लिए दंडवत शरण में पड़े रहते हैं । जमाने के अनुसार खुद का रसूख कायम रखने का अमूमन सभी वर्ग कुछ ऐसा तरीका ही अख्तियार करता जिसे एक हद तक जायज भी कहे तो गलत नहीं होगा। परंतु जनाब अफसर साहब अपनी रसूख का डंडा प्रकृति और पर्यावरण पर चलाएंगे तो कैसे बख्से जायेंगे । साहब जितनी तेज गति से बीट प्रभारी से वन मंडल के दूसरे बड़े ओहदे तक पहुंच चुके हैं उसी गति से कोरिया वन मंडल के तमाम अन्य गतिविधियों पर भी अपनी जड़ें जमाए हुए हैं । जनाब जंगल के कानून और रेंजर सहित यहां के तमाम कर्मचारी को अपना गुलाम बना रखे हैं । जिसकी वजह है जंगलों में तमाम माध्यमों के लिए किए जाने वाले निमार्ण कार्य और विकास कार्य में इनका सीधा दखल बतौर ठेकेदारी। सीधी बात पर आएं तो जनाब अफसर साहब को वन मंडल के रेंजों में इन्हे वही अफसर चाहिए जिसे मूल दायित्यों से मतलब नही बल्कि अधिया की रेंजरी करना पसंद हो और अपना छोटा सा हिस्सा ले और मूकदर्शक बना रहे । जी हां अगर कोई अफसर या कर्मचारी इनकी शर्त पर काम नही करता तो जनाब अपनी सरगुजा वन वृत या फिर अरण्य भवन वाली जड़ को हिलाकर ईमानदार अफसर की जड़ हिला देते हैं । साम दाम और दण्ड भेद की करतब बाजी में माहिर साहब को हर पैंतरा बखूबी आता है की वो इतने सबके बाद भी कुर्सी पर बने रहते हैं और अपने हिटलर शाही का डंडा हांकते रहते हैं।
उत्तर तर्रा से सागौन और भागवतपुर से 500 सौ साल गायब,अब पश्चिम तर्रा के काटे जा रहे साल ,,
एक रेंजर तीन तीन प्रभार और उस पर भी मूकदर्शक की भूमिका में रेंजर, सोचिए कैसे होगी जंगल की सुरक्षा अवगत करा दें की देवगढ़ रेंज के रेंजर को उनकी उदारवादी शैली की वजह से उन्हें बतौर इनाम अफसर साहब की ओर से बैकुंठपुर और चिरमिरी रेंज का भी अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है और जिस कारण रेंजर साहब इतने व्यस्त हो गए हैं की रोज सिर्फ वन मंडल मुख्यालय से घर स्कूटी से चक्कर लगाते ही नजर आते हैं इतना ही नहीं इनके तीनों रेंज के अन्य जमीनी अमले और बाबू कर्मचारी तक जंगल की जिम्मेदारी छोड़ अन्य गतिविधियों में शामिल रहते हैं । जिसका परिणाम देखने को मिला है की सोनहत रेंज का भागवतपुर जिसके तंजरा और कछाड़ी बीट का लगभग 500 साल के बड़े वृक्ष के जंगल को काटकर वहा की आबादी ने जंगल पर अवैध अतिक्रमण कर लिया है साथ ही उत्तर तर्रा का सागौन जंगल खत्म हो गया है और अब दक्षिण व पश्चिम तर्रा के सरई के वृक्ष कोरिया सहित एमसीबी जिले के फर्नीचर दुकानों में खुले आम फर्जी बिल बनाकर बेचे जा रहे हैं।