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तीजा नारी सम्मान का उल्लास परब

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नारी के अंत: सम्मान उल्लास का पर्व तीजा छत्तीसगढ़ में उत्साह लिए होता है। यह त्योहार छत्तीसगढ़ के लोक रंग में रंगा त्योहार होता है। यहां की लोक रंग की सतरंगी संस्कृति पूरे आभा मंडल को आलोकित करती है।इस पर्व का उत्साह इसी से पता चलता है यदि भादों में आप किसी मातृशक्ति से बात करें तो वह पहले तीजा की ही बात करेगी। तीजा का नाम सुनते ही उनके चेहरे पर चमक आ जाती है।

छत्तीसगढ़ में नारी का विशेष स्थान है। छत्तीसगढ़ में नारियां बहुत सम्मानिय रहीं हैं। उनका स्थान संस्कृति के केंद्र में रहा है। आर्थिक उन्नति में भी छत्तीसगढ़ की नारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

तीजा की तैयारी –

भादों का महीना पर्व और उपवास का होता है। भादों की आहट हुई और मातृशक्तियों के मन में तीजा की तैयारी के सपने सजने लगते हैं। तीजा पर नवीन वस्त्र आभूषण और गहने के लिए आशाएं सजाती हैं। इन सबसे बढ़कर उन्हें इंतजार होता है अपने मायके जाने का। कितनी भी उम्र हो जावे पर मायके के बुलावे का इंतजार अवश्य होता है। अंततः उनकी आस बुलावा आने पर ही पूरी होती है।

तीजा के तीन दिन पहले पोला मनाया जाता है। इसलिए घर की साफ -सफाई, लिपाई -पुताई पहले से ही आरंभ हो जाती है। इन त्योहारों में सभी मातृशक्तियां स्थानीय मंदिरों में जाकर पोला में नंदी की पूजा करती हैं। साथ ही शिव गौरा की पूजा करती है।

तीजा न्योता

छत्तीसगढ़ में तीजा और मायका का अटूट संबंध होता है। तीजा शुरू होने से आठ दिन पहले रिश्ते -नाते और आस पड़ोस की बेटियों को भोजन के लिए बुलाया जाता है। उन्हें उनकी पसंद के उपहार दिए जाते हैं।इसमें साड़ी और सुहाग सामग्री बेटियों को दी जाती है। यह न्योता तीजा के बाद भी चलता रहता है।

तिजहारिनों का स्वागत –

छत्तीसगढ़ में तीजा पर हर स्त्री मायके जाती है। कई बार दूर – दराज के गावों में। मायका होने और बरसात के कारण समय से तीजहारिनें घर नहीं पहुंच पातीं । ऐसे में अनेक उदाहरण सामने है कि जिस गांव में तीजहारिनें वर्षा के कारण अपने मायके नहीं पहुंच पाती वहीं पर उनका आत्मीय स्वागत होता है। उन्हें वहीं यथा उचित सम्मान मिलता है। ऐसा अनोखा आत्मीय भाव छत्तीसगढ़ में ही देखने को मिलता है।

फुल्हेरा सजाना –

तीजा की पूजा में गौरा -गौरी की सज्जा को फुल्हेरा रखना कहते हैं।इसमें पाटे पर गौरा गौरी की मिट्टी की मुर्तियां बनाकर उन्हें छोटे-छोटे नवीन वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। उसकी सज्जा को शादी के मंडप जैसा रूप दिया जाता है। केले के पत्तों के द्वारा और आम के पत्तो से बंदनवार बनाई जाती है फूलों की झालर बनाई जाती है। रंग -बिरंगे फूलों से पूरे मंडप का श्रृंगार किया जाता है।

तीजा में बासी खाना

छत्तीसगढ़ में बासी खाना का अपना अलग महत्व है। बासी खाना छत्तीसगढ़ संस्कृति का अटूट भाग है। तीजा में इस भोजन का बड़ा महत्व है। तीजा का वर्त पूरी दो रात और एक दिन रखकर जब तीसरे दिन उपवास खोला जाता है तब उस समय पारंपरिक रूप से बासी भात खाया जाता है। कहीं कहीं इसे करू भात भी कहते हैं। इसमें करेला जैसी कड़वी सब्जियों का इस्तेमाल होता है।

तीजा के गीत –

लोक साहित्य संस्कृति का आइना होता है ।लोक साहित्य में परंपराएं जीवंत रहती हैं । ऐसे ही पर्वों की बानगी में तीजा के गीत गाये जाते है। तीजा नारी के सम्मान का उल्लास पर्व है जिसमें वे आपस में सुख दुख बांटती हैं। पार्वती की पूजा कर वह अंत:प्रेरणा ले जीवन की कठिनाइयों से जूझने के लिए कर्म करती हैं।

तीजा के पारंपरिक व्यंजन –

संस्कृति और परंपरा का अहं भाग उसके पारंपरिक व्यंजन होते हैं। इन व्यंजनों की अपनी खास बात और लोक महक होती है। छत्तीसगढ़ में हर पर्व पर अलग-अलग व्यंजन होते हैं। तीजा के समय हर घर में ठेठरी , खुरमी , सोहारी इत्यादि बनाए जाते हैं। ठेठरी छत्तीसगढ़ की पारंपरिक नमकीन व्यंजन है और खुरमी मीठा व्यंजन है। तीजा उपवास के एक दिन पहले करू भात खाए जाने की परंपरा है। इसमें सब्जी महत्वपूर्ण होता है । करेला खाने से प्यास कम लगती है। जिससे दो रात और एक दिन का वर्त रखना आसान होता है। किंतु समय के बदलते परिवेश में पारंपरिक व्यंजनों के साथ अनेक प्रकार के व्यंजन शामिल हैं।तीजा में बेटी के मान सम्मान करने की परम्परा आज भी प्रचलित है।

तीजा हमें सामाजिक एकता एवं समरसता का संदेश देती है। तीजा पर्व के बहाने तीज के दौरान हाथों में मेंहदी सोलह श्रृंगार और पिया की लम्बी उम्र की कामना का सिलसिला सदियों पुराना है। इन उत्सवों के जरिए ही हम नयी पीढ़ी को इसका महत्व समझा सकेंगे ताकि वो भी अपनी भारतीय परंपराओं को आगे बढ़ाने मे सहभागिता निभा सकें।

अंत मे सभी को तीजा पर्व की ढेरों शुभकामनाएं।

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बुद्धम श्याम 
अध्यक्ष सरगुजा सीने आर्ट एसोसिएशन
अंबिकापुर सरगुजा

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