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पहाड़ी नदियाँ अकेले दम पर विशाल नहीं बनती

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आज इस अंचल की पहाड़ी नदी हसदो पर चर्चा करते हुए हम यह कह सकते हैं कि हसदो ही नहीं बल्कि देश की सभी पहाड़ी नदियों का अस्तित्व एवं विशालता छोटी-छोटी सहायक नदियों के सह अस्तित्व पर ही निर्भर होती है . इन सहायक नदियों के सह अस्तित्व एवं सहयोग के बिना कोई भी पहाड़ी नदी अपने दम पर विशाल नहीं बन सकती.
गजलकार दुष्यंत कुमार की दो पंक्तियां इस पूरी दास्तान को इस तरह व्यक्त करती है —
” यहां आते-आते सूख जाती है कई नदियां
मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा”

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ब्रह्मांड की सबसे बड़ी पूंजी पृथ्वी की संरचना प्रकृति नियंता ईश्वर ने बड़ी गंभीरता और तन्मयता के साथ किया है क्योंकि इसमें जीव जंतुओं पहाड़ों जंगलों नदियों का वैभव एवं सुंदरता भरी हुई है. यही कारण है कि स्वयं नियंता के अंश का ईश्वरीय अवतार भी इसी पृथ्वी पर हुआ है.

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ब्रह्मांड में बसे हमारे सौरमंडल और पृथ्वी की कहानी जग जाहिर है यह सभी जानते हैं कि पृथ्वी को छोड़कर अन्य कोई ऐसा ग्रह नहीं है जहां पर मानव जीवन की उत्पत्ति के अब तक प्रमाण मिलते हैं. अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहे हैं कि किसी अन्य ग्रहों की खोज की जाए जहां मानव को बसाया जा सके लेकिन अब तक यह संभव नहीं हो पाया है. जीवन की उत्पत्ति के साथ आवश्यक है जीवन के संरक्षण हेतु आवश्यक उपकरण, जिसमें शामिल होते हैं हमारी पृथ्वी पर पर्याप्त पानी और हवा अर्थात का ऑक्सीजन जिससे जीवन को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है और जिससे यह जीवन फलता फूलता है और धीरे-धीरे बीजों के अंकुरण के साथ जीवन की शृंखला एक-एक कर आगे बढ़ती चलती है नष्ट होती है और पुनर्जन्म लेकर आगे बढ़ती है यह क्रम लगातार आगे भी चलता रहता है.

  •  पहाड़ी नदियाँ अकेले दम पर विशाल नहीं बनती

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पर्यावरण चिंतन का एक पहलू यह भी है कि पृथ्वी पर प्रकृति द्वारा मानव एवं जीवन की उत्पत्ति के पहले नदियों सागर एवं हिमखंडों की रचना की गई है जिसमें समृद्ध समुद्र एवं हिमखंड इतने विशाल क्षेत्र में फैले हैं कि उनके परिवर्तन का प्रभाव बहुत धीरे-धीरे पृथ्वी पर दिखाई पड़ता है लेकिन नदियां एवं भूजल स्त्रोत का प्रभाव मानव एवं जीव जंतुओं पर तत्काल दिखाई पड़ने लगता है. ज्यादातर नदियां पहाड़ी इलाकों की ऊंचाइयों से प्रारंभ होती है और अपनी छोटी-छोटी सहायक नदियों से जुड़कर आगे बढ़ती हुई विशाल रूप धारण करती हैं. इसी विशाल अस्तित्व पर नदियों मे बांध बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की जाती है इन्हीं बांधों के ऊपर बिजली पैदा करने से लेकर अन्य व्यवसायिक उपयोग तक किये जाते है. इसी व्यवसायिकता की आर्थिक दौड़ के बीच हम छोटी-छोटी जलधाराओं के पहाड़ी नालों को याद नहीं करते जिसका परिणाम होता है की बड़ी नदियों के विशाल पाट की चौड़ाई धीरे-धीरे कम होती जाती है और अंत में यह समाप्त होने लगती है किंतु जब तक हम इसके बारे में सचेत हो पाते हैं तब तक हमारे सभी प्रयास मुट्ठियों में हवा भरने जैसी बात साबित होने लगते हैं इसलिए यह जरूरी है कि छोटे-छोटे जल स्रोतों के मरते हुए नालो का अस्तित्व भी बनाए रखा जाए अन्यथा नदियों के विशालता धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी और हमें इसका पता भी नहीं चलेगा.

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छत्तीसगढ़ में कई नदियां प्रवाहित है जो आगे लंबी यात्रा करती हुई समुद्र में समा जाती है. अपने आसपास की छोटी बड़ी नदियों के बारे में यदि हम नजर डालें तब हमें महानदी के अस्तित्व की चिंता भी करनी चाहिए क्योंकि महानदी की सबसे बड़ी सहायक नदी हसदो नदी है जो कोरिया जिले के सोनहत क्षेत्र में फैले कैमूर की पहाड़ियों से निकलकर एक छोटे उद्गम धारा के रूप में प्रवाहित होती है. जो आज मात्र छोटे-छोटे जल कुंड के रूप में ही गर्मियों में दिखाई पड़ रही है. लगभग दो दशक पहले हसदो नदी एक महुआ पेड़ के जड़ के पास एक अनवरत स्रोत के रूप में प्रवाहित थी जिसे सोनहत की पहाड़ियों से उतरकर नीचे एक धारा के रूप में जड़ के नीचे से प्रवाहमान माना जाता था लेकिन वर्तमान समय में रेत के कुछ छोटे-छोटे कुंड में ही पानी दिखाई पड़ता है.

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इस नदी के पूर्व वर्तमान तक की कहानी यहां उद्गम पर माननीय जनप्रतिनिधि चरणदास महंत के सहयोग से बने मंदिर में वर्षों से आने जाने वाले श्रद्धालुओं से उनके चिंता जनक हसदो की कहानी से जाना जा सकता है. इस हसदो नदी की सहायक नदी में मुख्य रूप से तान, झींग, गेज तथा झुमका के साथ-साथ रेत के नीचे धीरे धीरे बहने वाली छोटी-छोटी नदिया नाले के स्वरूप में आगे मिलती चलती है. इसी हसदो नदी को ढुलकू पहाड़ी के हरड़ा गांव के बारहमासी तुर्रा से निकलने वाले निरंतर पानी के नाला और आगे बेलहिया नाला तथा पड़ेवा गाँव के कउआ खोह नाला तथा बिहारपुर गांव का सिसौली पारा नाला (जिसे गंगा धाम भी कहते हैं) यह सभी मिलकर आगे तिलझरिया नाला का निर्माण करते हैं जो बिहारपुर – सोनहत मार्ग से सड़क पार कर आगे बढ़ती है जो धुटरा गाँव के उपर हर्रीटोला गांव को घेर कर चलने वाली घुनैठी नदी से मिलकर आगे बढ़ती है. यह घुनेठी नदी बारहोमास बहने वाली जिंदा नदियों मे से एक है. जो समाप्त हो रही हसदो नदी को पानी देकर अपने छोटी लेकिन जिंदा नदी होने का अपना परिचय देती है. इसी हसिया नदी में मनेन्द्रगढ़ के पास विशाल बोरा नाला जो बौरीडांड रेलवे स्टेशन के पास मध्य प्रदेश के ऊपरी गांव के बीच से निकलकर रेलवे स्टेशन के किनारे किनारे चलते हुए पहाड़ी नालों के साथ उनके बरसाती पानी को लेकर आगे बढ़ती है और मनेन्द्रगढ़ रेलवे स्टेशन के उत्तरी भाग को घेरती हुई आगे लालपुर गांव से बढ़कर बस स्टैंड के नीचे हसिया नदी के आंचल में अपना पूरा पानी उड़ते देती है जिससे हसिया नदी समृद्ध बनकर आगे बढ़ाने के लिए ऊर्जा प्राप्त करती है. छोटी-छोटी नदियों नालों का सहयोग समन्वय का जल एक बड़ी नदी के निर्माण में कितनी अहम भूमिका निभाता है यह इन नालों के मिलने से ही पता चलता है. यही सहयोग और समन्वय मानव को चिंतन के कई पहलुओं पर विचार करने के लिए भी प्रोत्साहित करती हैं जिसका पहला पक्ष सहयोग एवं समन्वय की भावना से मिलकर एक बड़े निर्माण का संकल्प पूरा करना एवं दूसरा पक्ष यह साबित करता है कि छोटे-छोटे नालों का अस्तित्व यदि बचा कर रखा जाएगा तभी बड़ी नदियों में पानी का अस्तित्व बचा रहेगा अन्यथा विशाल नदियों को भी समाप्त होने में देर नहीं लगेगी.
. हसदो की सहायक नदियों में गेज नदी के बहाव का सहयोग बहुत बड़ी भूमिका निभाता है. गेज नदी हसदो की सबसे लंबी सहायक नदियों में से एक है जो आगे बढ़कर हसदो अरण्य के क्षेत्र में घूमती हुई हसदो के साथ-साथ बहती है. इसी नदी पर फैले हंसदो अरण्य जंगल के उपर बहुत बड़ा खतरा आज मंडरा रहा है क्योंकि इसी हंसदो अरण्य जंगल के 1880 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 23 नए कोयला ब्लॉक का भंडारण ही इस जंगल की मृत्यु का कारण बन चुका है जो यहां के आदिवासियों को जीवन मौत के बीच खड़ा कर चुका है वहीं हजारों पशु पक्षियों को की कई नष्टप्राय प्रजातियों पर भी यह एक बड़ा संकट बनकर इसी हंसदो अरण्य में इनकी कब्रगाह बनाने के लिए तैयार है इन सब के साथ इस क्षेत्र में नए कोयला उत्खनन परियोजनाओं से जहां-जहां का भूमिगत जल स्तर नीचे गिरेगा वहीं गेज की समाप्ति के साथ हसदो की समाप्ति का अनकहा निमंत्रण दिखाई पड़ रहा है.
हसदो नदी छत्तीसगढ़ के ज्यादा प्रदूषित नदियों में से एक गिनी जाती है क्योंकि इसी नदी पर छत्तीसगढ़ की विद्युत सूर्य कहे जाने वाले कोरबा जिले के 13 से ज्यादा थर्मल पावर प्लांट संचालित हैं. जिसका पूरा कचरा इसी नदी में समाहित हो रहा है इसी तरह चांपा की फैक्ट्रियां और मनेन्द्रगढ़ जैसे व्यावसायिक शहर की गंदगी भी हसिया नदी के जरिए इस नदी में डाली जा रही है. महेंद्रगढ़ के निवासी होने के कारण हमारा चिंतनीय पहलू यह है कि लगभग 100 करोड़ की नगर पालिका मनेन्द्रगढ़ के पास नगर के प्रदूषित पानी को साफ करके हसदो में डालने के लिए अब तक कोई भी परियोजना विचाराधीन नही है. जबकि स्वच्छता के नित नये प्रयोग मे हसिया के पानी को साफ करके हसदो मे डालने हेतु आज यह बहुत जरुरी है. जानकारी के अनुसार सन् 1900 से कारीमाटी नाम से अपनी ऐतिहासिक धरोहर लिए हुए मनेन्द्रगढ़ सैकड़ो वर्ष पुराने इस नगर के क्रमिक विकास की कहानी में कचरा प्रदूषण को समाप्त करने या काम करने के लिए कोई ध्यान नहीं दिया जाना हमारी सबसे बड़ी चिंता मे शामिल होना चाहिए. अपने समय के कोरिया राज्य मे 1931 मे राजा रामानुज प्रताप सिंह देव द्वारा मनेन्द्रगढ़ की 2600 आबादी की नगरी के लिए एक नगरपालिका की स्थापना की गई जिसके प्रारंभ मे नामांकित कमेटी को संचालन दायित्व दिया गया. 1936 में यह नगर पालिका अपने पूरे अस्तित्व में आ गई जिसका आजादी के बाद चयनित कमेटी के माध्यम से कार्य संपन्न होने लगे. अविभाजित अंबिकापुर के साथ-साथ मनेन्द्रगढ़ में स्थित इतनी पुरानी नगर पालिका में हसदो नदी के कचरे को समाप्त करने के प्रति चेतना नहीं होना कई प्रश्न खड़े करता है. कचरे को एक जगह से उठाकर दूसरी जगह डंप कर देने से कचरा समाप्त नहीं होता बल्कि धीरे-धीरे घुलकर पानी और वायु के माध्यम से हमारे स्वास्थ्य को तिल तिल कर तोड़ रहे हैं. यह हमारी चिंता के विषय में शामिल होना चाहिए . मुझे उम्मीद है कि प्रदूषण को कम करने के लिए और नालों के पानी को स्वच्छ कर साफ पानी हसदो नदी में डालने हेतु यदि कोई प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा तब इसे अवश्य स्वीकृति मिलेगी. जिससे नगर को हसदो से स्वच्छ पीने का पानी भी नगर को मिल सकेगा और हसदो में प्रदूषण की मात्रा को कम करने के प्रयास की चर्चा दूसरों के लिए मार्गदर्शक बनेगी.
आज इस अंचल की पहाड़ी नदी हसदो पर चर्चा करते हुए हम यह कह सकते हैं कि हसदो ही नहीं बल्कि देश की सभी पहाड़ी नदियों का अस्तित्व एवं विशालता छोटी-छोटी सहायक नदियों के सह अस्तित्व पर ही निर्भर होती है . इन सहायक नदियों के सह अस्तित्व एवं सहयोग के बिना कोई भी पहाड़ी नदी अपने दम पर विशाल नहीं बन सकती.
गजलकार दुष्यंत कुमार की दो पंक्तियां इस पूरी दास्तान को इस तरह व्यक्त करती है —
” यहां आते-आते सूख जाती है कई नदियां
मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा”

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लेखन एवं प्रस्तुति
बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव
मनेन्द्रगढ़, 497442.
संपर्क 9425581356.

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