कोरिया

क्या ? एस डी ओ ने बिना गूगल रिकॉर्ड सत्यापन के थोक के भाव बांट दिया वनाधिकार पट्टा

पूर्व कांग्रेस विधायक को लड्डू से तौलने वाले एसडीओ उन्हे खुश करने नियम विरुद्ध बांट दिए पट्टे- सूत्र

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मनेंद्रगढ़ /बीते 5 वर्ष कांग्रेस शासनकाल में मनेंद्रगढ़ वन मंडल में पदस्थ एसडीओ साहब अपने दायित्वों को छोड़कर राजनीतिज्ञ लोगों के सेवा और जी हुजूरी में देखे जाते रहे हैं । इतना ही नहीं सूत्र बताते हैं की नेता जी के लिए बीते पूरे 5 वर्ष और चुनाव के वक्त भर भरकर फंडिंग भी पूर्व डीएफओ और जनाब एस डी ओ साहब ने कराए हैं । और अगर कांग्रेस की सरकार प्रदेश में दोबारा बनी होती तो एसडीओ साहब वर्तमान में प्रभारी डीएफओ भी होते लेकिन शायद एसडीओ साहब का मंसूबा पूरा न हो सका और छत्तीसगढ़ से कांग्रेस सरकार जाने के बाद से एसडीओ साहब इस बात को लेकर सदमे में हैं की उनका सारा मन और धन से किया धरा मट्टी पलीत हो गया । और अब नेकी कर नही, बल्कि भ्रष्टाचार कर दरिया में डाल से खुद को संतुष्ट करने में लगे हैं ।
बीते तीन वर्षों के कार्यकाल में एसडीओ साहब ने नेता जी को खुश करने के लिए जो किया उसे तो हमने बता दिया है परंतु कुछ और भी चौकाने वाले पहलू हैं जिसके लिए एसडीओ साहब को काफी दिक्कत भी हो सकती है । अवगत करा दें सूत्र के मद्देनजर विगत तीन वर्ष और चुनावी वर्ष कांग्रेस सरकार में केल्हारी और बहरासी रेंज में बहुत सारे ऐसे वनाधिकार पट्टे बांटे गए हैं जिनकी पात्रता को दरकिनार करते हुए वन विभाग के अंदरखाने के नियमों की धज्जी उड़ाई गई है और वह भी एसडीओ साहब के मौखिक आदेश पर। अब आते हैं उन नियमों पर जिनके आधार पर वनाधिकार दिया जाता है । वर्ष 2012 में हुए वनाधिकार संशोधन के अनुसार किसी भी जाति समुदाय का ऐसा परिवार जिसने वर्ष 2005 के पहले से उक्त वनभूमि में काबिज है और उस वनभूमि पर उसका परिवार जीवकोपार्जन के लिए आश्रित है साथ ही उस वनभूमि के गूगल रिकॉर्ड में उसका कब्जा वर्ष 2005 के पूर्व से पट्टा वितरण तक दर्शाता रहा हो तभी वह वनाधिकार के लिए पात्र होता है । और वन विभाग के पास जरूरी रिकॉर्ड के तौर यह गूगल पर दर्ज ही एक मात्र ऐसा सुबूत रहता है जिससे यह सिद्ध होता है की उक्त भूमि पर क्या दर्ज था और है । यह कुछ नियम हैं जिनका पालन वन विभाग के अफसरों को करना पड़ता है । वन विभाग वर्ष में दो बार प्रत्येक वर्ष वनभूमि के गूगल रिकॉर्ड में अपनी समस्त वनभूमि को संधारित रखता है और उसकी निगरानी करता है। और यही एकमात्र आधार होता है वनाधिकार का ।आपको बता दें की हवाले से जो जानकारी मिली है उसके अनुसार मनेंद्रगढ़ और विहारपुर में भी ऐसे पट्टे वितरण करने की योजना थी परंतु यहां पर मनोज विश्वकर्मा जैसे युवा ईमानदार एसडीओ ने यह कृत्य करने से इंकार कर दिया और सिर्फ पात्र हितग्राहियों को ही वनाधिकार पट्टे दिए ।लेकिन जहां केल्हारी फॉरेस्ट सब डिवीजन अंतर्गत बहरासी और केल्हारी की बात करें तो यहां तो नेता जी के प्रिय और लाडले एसडीओ का आबंटित कार्यक्षेत्र था तो वहां नेता जी को क्यू नाराज करते उनकी विधायकी जितने पर फूल माला और लड्डुओं से तौलने वाले एसडीओ साहब । लिखे गए सभी बिंदुओं पर उच्चाधिकारी द्वारा जांच की जाए तो हतप्रभ कर देने वाली स्थिति सामने आयेगी ।

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